उत्तर प्रदेशलखनऊ

Lucknow News: लखनऊ नगर निगम के 22 कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज

संगठन ने नगर निगम के चीफ इंजीनियर पर तानाशाही का आरोप लगाया। साथ ही जिन कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है उसको वापस लेने की मांग की है।

लखनऊ। (Lucknow News) उत्तर प्रदेश की राजधानी स्थित लखनऊ नगर निगम के 22 संविदा कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद निगम के कर्मचारी संगठन आक्रोशित हो गए हैं। सोमवार को नगर निगम कर्मचारी संघ के बैनर तले यहां के कर्मचारियों ने निगम मुख्यालय में प्रदर्शन किया। संगठन ने नगर निगम के चीफ इंजीनियर पर तानाशाही का आरोप लगाया। साथ ही जिन कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है उसको वापस लेने की मांग की है। (Lucknow News)

नगर निगम के मुख्य अभियंता मनोज प्रभात ने निगम के 22 संविदा कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। उन्होंने लिखा  है कि यह कर्मचारी हटाए जाने के बावजूद नगर निगम के आर आर विभाग कार्यालय में कब्जा किए हुए हैं। इसकी जानकारी मिलने के बाद सोमवार को दर्जनों कर्मचारी नगर निगम मुख्यालय में डट गए। (Lucknow News)

नगर निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष आनंद वर्मा के नेतृत्व में पहुंचे नेताओं ने कहा कि इन कर्मचारियों का मामला उच्च न्यायालय में चल रहा है। वेतन और उनकी नौकरी को लेकर कर्मचारियों ने केस दायर किया है। जब तक अदालत से कोई फैसला नहीं हो जाता है तब तक नगर निगम को इस तरह उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि इसका विरोध किया जाएगा। कर्मचारी महापौर से मिलने के इंतजार में बैठे थे। कार्यकारिणी की बैठक चल रही है। वहां से मेयर के निकलने के बाद कर्मचारी उनसे मुलाकात करेंगे। एफआईआर को वापस कराने की मांग करेंगे। (Lucknow News)

Lucknow News: नगर निगम के अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नगर निगम में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। वर्तमान में लखनऊ नगर निगम का बजट 2800 करोड़ रूपये से अधिक है। यहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वर्तमान नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह की ईमानदारी पर कोई सन्देह नहीं कर सकता। वह 2015 बैच के आई. ए. एस.अधिकारी हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विशेष रूप से उनको नगर निगम में पद स्थापित किये है। लेकिन उनके अधीनस्थ भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

विगत कुछ दिनों पूर्व में हुए नगर निगम सदन में नगर में कूड़ा उठाने वाली फर्म को लेकर सदन में सरोजनीनगर वार्ड द्वितीय के पार्षद रावत द्वारा नगर आयुक्त पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये थे। जिससे ईमानदार नगर आयुक्त असहज हो गये थे। लेकिन यह भी तथ्य रोचक है कि नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह के ईमानदार होने का क्या फायदा कि उनके अधीनस्थ भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। यह सर्वविदित है नगर निगम के नाली इन्टरलाकिंग तथा रोड के ठेकों में गुणवत्ता के विपरीत 45 प्रतिशत तक कमीशन लिया जा रहा है। यह ठेकेदार स्वयं बयां करते हैं। कहीं-कहीं तो गलियों के निर्माण में पुरानी टाईल्स निकाल कर उसमें नई टाईल्स मिलाकर लगा दी जा रही है और भुगतान प्राप्त कर लिया जा रहा है।

संविदाकर्मियों का पीएफ हजम कर रहे भ्रष्ट अधिकारी
इसके अतिरिक्त संविदा पर कर्मचारियों को रखने वाले संविदा ठेकेदार संविदा कर्मियों का करोड़ों के प्राविडेन्ड फण्ड की धनराशि हजम कर जा रहे हैं। जबकि नगर निगम द्वारा संविदा कर्मियों के वेतन का 13 प्रतिशत नगर द्वारा तथा 10 प्रतिशत संबंधित संविदा कर्मचारी के वेतन से काटकर जमा कराने का प्राविधान है और कर्मचारी राज्य बीमा निदेशालय (ई.एस.आई.सी.) में भी 4.5 प्रतिशत धनराशि उसके वेतन से तथा नगर निगम द्वारा अपने अंश के साथ जमा कराने का प्राविधान है लेकिन यह सब नहीं हो रहा है और कर्मचारियों के साथ अन्याय हो रहा है। इससे कर्मचारियों और उनके परिवार के साथ घोर अन्याय हो रहा है।

फलफूल रहे भ्रष्टाचारी ठेकेदार
भ्रष्टाचारी संविदा ठेकेदार खूब फलफूल रहे हैं और ईमानदार नगर आयुक्त इस पर मौन हैं। उन्हें इस पर त्वरित कार्यवाही करना चाहिए। सूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि नगर निगम लखनऊ के महापौर सुषमा खर्कवाल भारी भ्रष्टाचार की गंगा बहाये हुए हैं और भ्रष्टाचार के कीर्तिमान उन्होंने तोड़ दिये हैं। जिसको लेकर नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह असहज रहते हैं और उनके भ्रष्टाचार के आगे नतमस्तक रहते हैं। बताया जाता है कि महापौर सुषमा खर्कवाल की निधि 35 करोड़ रूपये वार्षिक है जिसके द्वारा नगर में विकास कार्य के ठेके अनुमोदित किये जाते हैं।

महापौर सुषमा खर्कवाल के भ्रष्टाचार का आलम यह है कि उनके द्वारा खुले आम 15 प्रतिशत कमीशन लेकर धड़ल्ले से नाली, इन्टरलांकिग तथा रोड निर्माण के कार्य ठेकेदारों को अनुमोदित किये जा रहे हैं। जबकि कार्य की गुणवत्ता से उनका कोई लेना-देना नहीं रहता है। इसके अतिरिक्त महापौर सुषमा खर्कवाल का नगर निगम के अन्य आर्थिक कार्यों में भी हस्तक्षेप रहता है। चूंकि नगर आयुक्त की चरित्र पंजिका में प्रविष्टि लिखने का अधिकार महापौर का होता है, इसलिए नगर आयुक्त उनसे भयभीत रहते हैं और चुपचाप बिना इन्क्वारी किये उनकी फाइलों का अनुमोदन कर देते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि नगर आयुक्त ने महापौर के आगे हथियार डाल दिये हैं। उनकी सारी ईमानदारी बेकार है और नगर निगम में चर्चा का विषय भी है।

कई सालों से जमे बैठे अपर नगर आयुक्त (पशुपालन)
सूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि नगर निगम, लखनऊ में कई वर्षों से अपने रसूख के बल पर जमे हुए भ्रष्टाचारी अपर नगर आयुक्त (पशुपालन), डा. अरविन्द राव को महापौर सुषमा खर्कवाल का पूरा संरक्षण है और वह निर्बाध गति से भ्रष्टाचार कर रहा है। सूत्रों के अनुसार नगर में घूमने वाले आवारा पशुओं को उसके अधीनस्थ कर्मियों द्वारा पकड़ा जाता है और आवारा पशुओं के लिये बने कान्हा उपवन में उनको नहीं भेजकर उनको कटने के लिये कसाईयों को बेच दिया जाता है। कई बार पशुपालकों द्वारा डा. अरविन्द राव पर पथराव भी किया गया और वह जान छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ लेकिन बताया जाता है कि रसूख के बल पर वह आवारा पशुओं को कटवा रहा है और महापौर का उसे पूरा संरक्षण है। इसकी जाँच हो जाय तो निश्चित रूप से सारे तथ्य उजागर हो जायेंगे।

कान्हा उपवन में जमकर भ्रस्टाचार, पत्रकारों का प्रवेश वर्जित
कान्हा उपवन में रखे गये आवारा पशु भूखे प्यासे दिखाई पड़ सकते हैं और आँसू बहाते मिल जायेंगे। कान्हा उपवन में बिना अनुमति के पत्रकारों के साथ ही साथ किसी का भी जाना वर्जित है। बताया जाता है कि नगर निगम लखनऊ क्षेत्र में आवारा कुत्तों की भरमार है जो आये दिन जनमानस को काट लेते हैं और इसकी खबरें समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं जबकि इसके लिए प्रति वर्ष करोड़ रूपये की धनराशि कुत्तों की नसबन्दी हेतु आवंटित की जाती है। लेकिन खेदजनक है कि स्वयं सेवी संस्था (एन.जी.ओ.) को कुत्तों की नसबन्दी की धनराशि आवंटित की जाती है और प्रति वर्ष बंदरबांट कर ली जाती है और ईमानदार नगर आयुक्त द्वारा बिना जांच पड़ताल के उसका भुगतान कर दिया जाता है जबकि उनको इसकी गहनता से जांच करनी चाहिए तथा एन.जी.ओ. के बजाए पशुपालन विभाग को धनराशि आवंटित कर उनसे कुत्तों की नसबन्दी का कार्य कराया जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त आर.आर. विभाग, प्रचार विभाग, कर विभाग, नगर निगम के सभी विभागों में भारी भ्रष्टाचार देखा जा सकता है जबकि सबसे रोचक तथ्य यह है कि नगर निगम, लखनऊ में कई पार्षद ऐसे हैं जो दूसरे दलों से भाजपा में आये हैं और पार्षद हैं तथा अरबो रूपये की सम्पत्ति के मालिक हैं।

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