उत्तर प्रदेशलखनऊ

चुनावी माहौल में बिगड़ सकती है अनुबंधित बसों की चाल!

-रोडवेज मुख्यालय फिर पहुंचे आजमगढ़-बनारस रूट के दो दर्जन प्राइवेट बस ऑपरेटर

मुख्यालय से निराश, परिवहन मंत्री से लगायेंगे गुहार, नहीं मिला न्याय तो जायेंगे न्याय के दरबार

सुधीर कुमार
लखनऊ। मौजूदा लोकसभा चुनाव के गरमागरम माहौल में कहीं पर और किसी समय भी यूपी रोडवेज के साथ अनुबंध हुर्इं 130 से अधिक निजी बसों की चाल आजमगढ़-बनारस रूट जैसे अत्यधिक पैसेंजर लोड फैक्टर वाले सड़क मार्ग पर बिगड़ सकती है। वजह मानें तो, अपनी भुगतान से जुड़ी आर्थिक क्षति को लेकर बीते कई माह से इस रूट के दो दर्जन से अधिक प्राइवेट बस आॅपरेटर्स रोडवेज मुख्यालय के चक्कर पर चक्कर काट रहे हैं, मगर गुरुवार को इनका आश्वासन सीधे तौर पर निराशा में तब्दील हो गया। आजमगढ़ से यहां पहुंचे प्रमुख बस ऑपरेटर अजीत प्रताप सिंह की मानें तो काफी इंतजार के बाद जब आज एमडी मासूम अली सरवर उन लोगों से मिले तो उन्होंने साफ कर दिया कि वो आर्बिटेशन की मंजूरी नहीं दे सकते हैं, बाकी वो लोग जो करना चाहे करें। इसके बाद बस ऑपरेटरों का समूह आगे परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह से मिलने की तैयारी कर रहा और यह भी कहना रहा कि यदि वहां पर भी उनकी बात नहीं सुनी गई तो वो अपने हक के लिये न्याय के दरबार में भी जा सकते हैं।

जिन शर्तों पर पूर्व में रोडवेज ने किया करार, अब भुगतान में उनको कर रहे दरकिनार

सीएम की मंशा ऐसे तो नहीं होगी पूरी…!
वहीं दूसरे बस आॅपरेटर अभय कुमार सिंह ने कहा कि एमडी साहब का रवैया हमारे लिये निराशा भरा रहा, आगे बोले कि यदि अब यही कहना था तो निगम प्रबंधन को जो ये लोग बीते छह माह से जो रिमाइंडर व लेटर देते आ रहे हैं तो फिर इन सबका अब क्या मतलब निकला। यूनियन के प्रमुख पदाधिकारी राकेश बाजपेई बोले कि मनमाने अनुबंध नीति के नाम पर केवल निजी बस स्वामियों का शोषण किया जाता है जोकि तर्कसंगत नहीं है। वहीं एक अन्य बस आॅपरेटर ने रूंधे गले में कहा कि अब तो आलम यह है कि 50-60 लाख की वो अनुबंध के नाम पर गाड़ी लगाते हैं और फिर जब भुगतान की बात आती है तो तमाम स्तर से कटौती की कैंची चला दी जाती है, अब तो गाड़ी की किश्त भरना भी मुश्किल है।

130 से 140 अनुबंधित बसें चलती हैं रूट पर, बोले कि एमडी ने आर्बिटेशन से किया इंकार

यूनियन महासचिव अजीत सिंह का कहना रहा कि कुल मिलाकर यही स्थिति तो अब प्रदेश भर के निजी बस आॅपरेटरों की होती जा रही है, ऐसे नकारात्म वातावरण में कोई वाहन स्वामी कैसे लाखों खर्च करके सड़कों पर गाड़ी दौड़ाने के लिये तैयार होगा जबकि सीएम योगी खुद कई बार निगम और परिवहन विभाग के कार्यक्रमों में अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं कि बसों के बेड़ों को बढ़ाने के लिये अनुबंधित बस सेवाओं में वृद्धि की जाये जिससे ग्रामीण और कस्बाई इलाके के करोड़ों आम मुसाफिरों को रोडवेज बसों के परिवहन सेवा से जोड़ा जा सके।

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