Dak Kawad Yatra 2024 Shahjahanpur: शाहजहांपुर में प्रथम डाक कावड़ यात्रा फर्रुखाबाद से गोला गोकरण नाथ
डाक कावड़ यात्रा 11 अगस्त 2024 को प्रात 9:00 बजे प्रारंभ होगी।
पुनीत मिश्रा
शाहजहांपुर। (Dak Kawad Yatra 2024 Shahjahanpur) सावन का महीना भगवान भोलेनाथ की भक्ति में डूबा हुआ है। उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों में बम बम भोले के जयकारों से इलाके गूंज रहे हैं। शंकर भगवान के भक्ति कांवरिया के रूप में अनेक प्रकार से भोलेनाथ के शिवलिंग पर गंगाजल से जलाभिषेक कर रहे हैं। कोई कावड़ लेकर जा रहा है तो कोई डाक कावड़ लेकर जा रहा है। शाहजहांपुर जनपद में प्रथम डाक कावड़ यात्रा का आगाज होने जा रहा है। यहां 11 अगस्त 2024 को फर्रुखाबाद से गोला गोकर्णनाथ तक डाक कावड़ यात्रा निकल जाएगी। डाक कावड़ यात्रा के आयोजक एवं ‘पत्रिका न्यूज़ यूपी’ के शाहजहांपुर संवाददाता पुनीत मिश्रा ने बताया प्रथम डाक कावड़ यात्रा फर्रुखाबाद से छोटी काशी यानी गोलगोकर्णनाथ तक ले जाई जायेगी। कांवड़ यात्रा में प्रमुख रूप से आदित्य, दीपक, शरद, अमन, मोनू पंडित राजवीर, मोहित मिश्रा के अलावा अन्य भोलेभक्त उपस्थित रहेंगे। डाक कावड़ यात्रा प्रात 9:00 बजे प्रारंभ होगी। (Dak Kawad Yatra 2024 Shahjahanpur)
बता दें कि, कांवड़ शिव की आराधना का ही एक रूप है। इस यात्रा के जरिए जो शिव की आराधना कर लेता है, वह धन्य हो जाता है। कांवड़ का अर्थ है परात्पर शिव के साथ विहार। अर्थात ब्रह्म यानी परात्पर शिव, जो उनमें रमन करे वह कांवरिया।कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ यात्रा, शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंग (जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं) कांवड़ यात्रा आदि बहुत महंगी होने के कारण तथा अति दुष्कर होने के कारण सबकी सामथ्र्य में नहीं होती। अमरनाथ यात्रा भी दूरस्थ होने के कारण इतनी सरल नहीं है, परन्तु कांवड़ यात्रा की बढ़ती लोकप्रियता ने सभी रिकार्ड्स तोड़ दिए हैं। इलाहबाद, वाराणसी, बिहार नीलकंठ (हरिद्वार), पुरा महादेव (पश्चिमी उत्तरप्रदेश) हरियाणा, राजस्थान के देवालय आदि में सैकड़ों-हजारों से होता हुआ कांवडिया जलाभिषेक लाखों-करोड़ों तक जा पहुंचा है। (Dak Kawad Yatra 2024 Shahjahanpur)
वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है। लेकिन श्रावण मास में कांवड़ के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है।कांवड़ के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। तभी तो सावन शुरु होते ही इस आस्था और अटूट विश्वास की अनोखी कांवड यात्रा से पूरा का पूरा इलाका केशरिया रंग से सराबोर हो जाता है। पूरा माहौल शिवमय हो जाता है।
अगर कुछ सुनाई देता है तो वो है हर-हर महादेव की गूंज, बोलबम का नारा। कुंवारी लड़किओं से लेकर बुजुर्ग तक सब सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने में लीन दिखाई देते हैं। कोई सम्पूर्ण माह व्रत रखता है तो कोई सोमवार को, परन्तु सबसे महत्पूर्ण आयोजन है ये कठिन यात्राएं जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं, जहां जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करतें हैं।भगवान भोलेनाथ का ध्यान जब हम करते हैं तो श्रावण का महीना, रूद्राभिषेक और कांवड़ का उत्सव आंखों के सामने होता है। शिव भूतनाथ, पशुपतिनाथ, अमरनाथ आदि सब रूपों में कहीं न कहीं जल, मिट्टी, रेत, शिला, फल, पेड़ के रूप में पूजनीय हैं। जल साक्षात् शिव है, तो जल के ही जमे रूप में अमरनाथ हैं। बेल शिववृक्ष है तो मिट्टी में पार्थिव लिंग है।
गंगाजल, पारद, पाषाण, धतूरा फल आदि सब में शिव सत्ता मानी गई है। अतः सब प्राणियों, जड़-जंगम पदार्थों में स्वयं भूतनाथ पशुपतिनाथ की सुगमता और सुलभता ही तो आपको देवाधिदेव महादेव सिद्ध करती है।कांवड़ शिव के उन सभी रूपों को नमन है। कंधे पर गंगा को धारण किए श्रद्धालु इसी आस्था और विश्वास को जीते हैं। यानी कांवड़ यात्रा शिव के कल्याणकारी रूप और निष्ठा के नीर से उसके अभिषेक को तीव्र रूप में प्रतिध्वनित। कहा जाता है कि कांधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए चलना भी काफी पुण्यदायक होता है।इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। यूपी, बिहार सहित दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान तक में कांवड़ लाने का प्रचलन है। घरों में भी प्रायः श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, करते हैं।
गंगा स्नान के पश्चात जल भर कर पैदल यात्रा सम्पन्न की जाती है। पूरे माह तक चलने वाली इस यात्रा में कांवडि़ये सैकड़ों किलोमीटर का सफर कर गंगा से जल भरकर लाते हैं और भगवान शिव को चढ़ाते हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार और झारखंड के देवघर में कांवड़ यात्रा का खासा महत्व है। कहा जा सकता है सावन लगते ही सड़कों पर अगर कुछ विशेष होता दिखाई देता है तो वह है कांवड़ यात्रा।कांवड़ लाने के लिए शिव के भक्त पूरे साल इंतजार करतें हैं कि कब वो हरिद्वार या झारखंड के सुल्तानगंज के लिए प्रस्थान करेंगे। कठिन यात्रा को पैदल पार करके भगवान भोलेनाथ पर चढायेंगे। कुछ लोग तो गंगोत्री तक से भी जल लेकर धाम में चढ़ाते हैं। हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं।
श्रावण की चतुर्दशी के दिन इस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु-पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है और किसी न किसी रुप में इन्हें भी जल मिल जाता है।सम्पूर्ण भारत में भगवान् शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त अपने कन्धों पर कांवड़ लिए हुए (कांवड़ में कंधे पर बांस तथा उसके दोनों छोरों पर गंगाजली रहती है) गोमुख (गंगोत्री) तथा अन्य समस्त स्थानों पर जहां भी पतित पावनी गंगा विराजमान हैं, से जल लेकर अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं। कांवड की जानकारी उस प्रसंग से प्राप्त होती है, जब मात-पितृ भक्त श्रवन कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड में बैठाकर तीर्थयात्रा के लिए निकले थे। ‘कस्य आवरः कावरः अर्थात परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ वरदान।
यूपी की ‘छोटी काशी’ है गोला गोकरन नाथ
लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ का पौराणिक शिव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। प्राचीन और अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का प्रसंग रामायण काल से जुड़ा है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था। वराह पुराण में लिखा है कि भगवान शिव वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण करते हुए, रमणीय स्थल पाकर यहीं रम गए। ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को चिंता हुई और वे उन्हें ढूंढते हुए यहां पहुंचे तो यहां वन में एक अद्भुत मृग को सोते देख समझ गए कि यही शिव हैं। वे जैसे ही उनके निकट गए तो आहट पाकर मृग भागने लगा।
पौराणिक प्रसंग के अनुसार देवताओं ने उनका पीछा कर उनके सींग पकड़ लिए तो सींग तीन टुकड़ों में बंट गया। सींग का मूल भगवान विष्णु ने यहां स्थापित किया, जो गोकर्णनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सींग का दूसरा टुकड़ा ब्रह्मा जी ने बिहार के श्रंगवेश्वर में स्थापित किया। तीसरा टुकड़ा देवराज इंद्र ने अमरावती में स्थापित किया। यहां के महात्म्य का वर्णन शिव पुराण, वामन, पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी भी कहा जाता है।